बच्चों के, विदेश जाने से, पूरे घर का माहौल बदल गया! सब कुछ वहीं था, वही घर, वही चारदीवारी, लेकिन बच्चों के बिना, घर सूना सा लगता था! उनके झगड़ों की आवाज, आज भी घर में गूंजती है! उनकी पसंद का खाना बनाना छूट गया और मैं, खुद के शौक, पूरे करना भी भूल गई! जिंदगी बहुत उदास, मानो, रुक सी गई हो! सब कुछ होते हुए भी, मैं, अंदर से बिलकुल खाली हो चुकी थी, अपने बच्चों के बिना, जो आज विदेश में खुश थे! पर मैं, यही तो चाहती थी, कि मेरे बच्चे खूब तरक्की करें, और आज वो कर रहे हैं! तो उनके आगे रो भी नहीं सकती और न ही उन्हें वापस लौटने के लिए बोल सकती हूं! सरकारी आंकड़ों के अनुसार साल, 2011 के बाद से अब तक, 1.6 मिलियन इंडियंस ने भारतीय नागरिकता छोड़ी है! इसके अलावा पढ़ाई, नौकरी या किसी और वजह से, हर साल 25 लाख भारतीय, विदेश चले जाते है! रोजगार की तलाश और एक अच्छे लाइफ स्टाइल की चाहत में, सिर्फ भारत ही नहीं, पूरी दुनिया में लोग, दूसरे देशों में पलायन करते हैं! यूनाइटेड नेशंस का अनुमान है कि लगभग 232 मिलियन लोग अपनी बर्थ कंट्री, से बाहर रहते या काम करते हैं! ब्रिटेन में स्टैंड अलोन नाम की एक संस्था की रिपोर्ट बताती है कि ब्रिटेन में हर पांचवें परिवार में कोई एक सदस्य परिवार से अलग रहता है! वहीं युगांडा में 50 से ऊपर की उम्र के करीब 9% लोगों ने अकेले जीवन गुजारना शुरू कर दिया है!
कारण चाहे कोई भी हो, घर से दूर जाकर बसने वाले लोगों के पीछे, महिलाएं, बच्चे और खासकर बुजुर्ग छूट जाते हैं! परिवार में अगर बेटियां हैं, तो शादी के बाद, वो अपने परिवार से ऑटोमेटिकली दूर हो जाती हैं, यानी ससुराल चली जाती हैं! हालांकि उनका आना-जाना चला रहता है, लेकिन सिर्फ एक मेहमान की तरह। और लड़के नौकरी की खोज में, बड़े शहरों या दूसरे देशों में चले जाते हैं। और ऐसे, बुजुर्ग माता-पिता, घर में अकेले रह जाते हैं। इमिग्रेशन, माइक्रो फैमिली के कुछ मेन कारणों में से एक है, जिसमें बच्चे एक भरे-पूरे परिवार के बिना, यानी अपने दादा-दादी और चाचा-चाची के प्यार के बिना बड़े होते है। हर माता-पिता अपने बच्चों की खुशी और उन्हें एक बेहतर जिंदगी देने के लिए दिन-रात एक कर देते हैं! खुद की ख्वाहिशों की बलि देकर, वो अपने बच्चों के सपनों को पूरा करते हैं! इस जिम्मेदारी को निभाते-निभाते, वो अपनी जिंदगी जीना भूल जाते हैं, यह सोचकर कि जब बच्चे बड़े हो जाएंगे, तो उनके साथ अच्छा समय बिताएंगे! और तो और, कुछ पेरेंट्स, रिटायरमेंट की प्लानिंग भी यह सोचकर करते हैं, कि जब बच्चे बड़े हो जाएंगे, तब वो अपने काम से रिटायरमेंट लेकर बच्चों के साथ आराम की जिंदगी जिएंगे, उनके साथ लाइफ के हर मूमेंट को एन्जॉय करेंगे!
जरा सोचिए, माता-पिता की ऐसी उम्मीदों के बाद, अगर कोई बच्चा उन्हें छोड़कर, कहीं बाहर जाकर बस जाए, तो उनके दिल और सपनों पर क्या बीतेगी! अपनों से दूर जाने के ख्वाब से भी हम डरते हैं! और बुढ़ापे में, जब पेरेंट्स को अपने बच्चों की सबसे ज्यादा जरूरत होती है, तब उनसे दूर होने का दर्द, उदासी, डिप्रेशन और अकेलापन ही उनकी जिंदगी बन जाती है। शायद यही कारण है, कि आज लगभग सभी देशों में, बुजुर्गों के लिए ‘‘ओल्ड एज होम’’ बनने लगे हैं! हालांकि, परिवार से दूर, उनके बेटे भी अकेले हो सकते है, अगर वो अपने पार्टनर या बच्चे के साथ वहां नहीं रहते! वजह, चाहे कोई भी हो, दूसरे राज्य या देश में जाकर रहना, एक लाइफ चेंजिंग मोमेंट है, उसके लिए भी जो जा रहा है, और जो पीछे छूट रहे हैं, उनके लिए भी! हिंदी फिल्म ‘‘प्यार तो होना ही था’’ में हीरो, पैसों और रोजगार की मजबूरी में विदेश जाता है, यह भी विदेश में पलायन का बड़ा कारण है! विदेशों की तरह एक अच्छी एजुकेशन क्वालिटी, करियर और हेल्थ केयर जैसी सुविधाएं, अगर भारत में होंगी, तो इससे दूसरे राज्यों और अब्रॉड में जाकर बसने का ट्रेंड कम हो सकता है! याद रखें, घर का मतलब- लोगों से है, चारदीवारी और छत से बना मकान नहीं! अगर कभी, पेसा, शोहरत, नाम से लेकर आप सब कुछ खो देंगे, तब भी सिर्फ एक परिवार है, जो उस वक़्त आपके साथ होगा! द रेवोल्यूशन -देशभक्त हिंदुस्तानी की ओर से, मैं, यह कहना चाहूंगी कि, सिर्फ, खून के रिश्ते, परिवार को जोड़कर नहीं रखते, बल्कि एक-दूसरे के लिए सम्मान, प्यार और खुशियां परिवार को जोड़ती हैं! दुर्भाग्य की बात है, शायद ही कभी एक परिवार के सदस्य, एक ही छत के नीचे बड़े होते हैं।